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एक हवा का झोंका कुछ यूँ छु के निकला ,
एक धुप की किरण कुछ यूँ सिरहाने बैठी ,
एक कोयल ने कुछ यूँ मधुर गीत सुनाया ,
भूल गया कि मुझे वो ठूंठ कहते हैं ।
एक शादी में मुझ पर यूँ रौशनी करी ,
किसी ने तस्वीरें ऐसी खींची कि पुरस्कृत करी ,
कुछ लोगो ने यूँ शोख रंगों के कपड़ों से सजाया ,
भूल गया कि मुझे वो ठूंठ कहते हैं ।
न जाने कैसे एक देवता की झलक मुझमे दिख गयी ,
जहाँ धूप में अकेले तपता था अब मुझे पूजने लम्बी कतारे लग गयी ,
जिन लोगो ने ही मुझे मृत घोषित किया ,
उन्होंने ही मेरे होने का एहसास कुछ ऐसा मुझमे जगाया,
भूल गया कि मुझे वो ठूंठ कहते हैं ।
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