Sunday, April 7, 2013

kya hua jo kal sookh jaoonga




मैं बंद लिफाफा नहीं, जिसे तुम डाक के ज़रिये कहीं भी भेज दोगे, 


मुझ पर किसी और का नाम लिख कर किसी को भी दे दोगे ;



मैं इक पत्ता हूँ जो अपनी ही शाख से जुदा हो गया हूँ ,



क्या हुआ जो कल सूख जाऊंगा, 



आग फिर भी लगा सकता हूँ जो इक चिंगारी दिखाओगे 




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