इन लहरों ने कुछ इस क़दर छु लिया ,
कि ज़िन्दगी आज फिर हसीन लगने लगी है ।
रेत का घर जो बनाया था हमने ,
उनकी प्यार भरी बातें उसे भी मज़बूत करने लगी हैं ।
देखा था इक नज़र मरते लम्हे उन्हें बस,
वो नज़रें हमें जीने को मजबूर करने लगी है ।
वोह तन्हाई जिसके साये में सोये थे अब तक
अब वो ही, हमसे हमें यूँ जुदा करने लगी हैं ।
ले चलो अब हमें अपने कुचे में साकी,
बोतलें अब हमें इस कदर पीने लगी है ।
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