कुछ एहसास खिडकियों की झरीटों से झाँक रहे थे 
कुछ अलफ़ाज़ दरवाज़ों के नीचे से अंदर घुसने की कोशिश में लगे थे 
कुछ तमन्नाए आज भी बाहर सूखने को पड़ी थीं 
कुछ सपने अभी भी गीले गीले से अध् कच्चे थे 
कुछ रातें अभी अभी चांदनी में नहायीं थीं 
कुछ  दिन अभी भी अँधेरी कोठरी में पड़े थे 
कुछ कुछ शायद हमने पाया भी था 
कुछ कुछ खोने के डर से अभी भी हम अकेले खड़े  थे 

 
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