Sunday, June 2, 2013

dhalte hue suraj ko...


Clicked this pic on shirdi - shani shingnapur highway in car. I really liked this pic. As usual, written here few lines inspired by this pic.


sunset clicked by jeevan sehgal


ढलते  हुए सूरज को हाथ बढाकर रोका था मैंने 
जो मुढ़ कर देखा उसने , उन खाली नज़रों से  कुछ तो बोल रहा था 
जैसे उन बरसों पुराने तालों को, बिन चाभी के  कोई  खोल रहा था 

ढलते  हुए सूरज को हाथ बढाकर रोका था मैंने 
कॉपी के पन्नो पे बस कुछ अक्षर लिख कर चला गया था 
अपने अधूरे इरादों को जैसे , खुद की आग में ही जला गया था 

ढलते  हुए सूरज को हाथ बढाकर रोका था मैंने 
फिर आज, कुछ अनदेखे ख्वाब यूँ बुने थे मैंने 
फिर आज,  कल के लिए इंतज़ार किया था मैंने 
फिर आज ढलता सूरज से नाता तोड़ा था मैंने  


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